सफ़र
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कितना कुछ बदल गया है जिंदगी में दिन, हालात, लोग और तुम। नहीं बदली है तो तुम्हारी वो बातें जो मेरे ज़ेहन में आज भी गूंजती है। हमारी वो खट्टी-मीठी यादें जो हमनें एक ही छत के नीचे रहते हुए बनाई थी। तुम्हे याद है ना जब भी तुम उदास हुआ करती थी। मैं तुम्हे कैसे घरवालों की नज़रों से बचाकर वो घर के पास वाले पहाड़ी मंदिर पर ले जाया करता था। मंदिर की सीढ़ियां चढ़ते वक़्त तुम कई दफ़ा झुंझला कर बोला भी करती थी...पूरे शहर में तुम्हे यही जगह मिली है मेरे साथ बैठने के लिए।
लेकिन मंदिर के कोने में बने उस बेंच पर बैठते ही तुम कितना खुश हो जाया करती थी। तुम्हारा चेहरा जो सीढियां चढ़ते वक़्त गुस्से से लाल हो जाया करता था। वो अब इतने पास से पंछियों को उड़ता देख, शहर के सबसे ऊँची जगह से पूरे शहर को निहारते हुए खुशी से गुलाबी होने लग जाता था।
कैसे आने-जाने वालों की नज़रों से बचाकर तुम मुझे गले से लगा लेती थी, और धीरे से कानों में Love You सार्थक बोलकर घंटों मुझे यूँ ही निहारते रहा करती थी।
16 सितंबर 2010 का वो प्यार भरा लम्हा आज भी मेरे चेहरे पर मुस्कान बिखेर जाता है। उस दिन बिरसा मुंडा फुटबॉल स्टेडियम के शोर-शराबे के बीच मुझे तुम्हारी हाँ के अलावा कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था। उस रोमांचक मुकाबले में हमारा शहर भले ही मैच हार गया था। लेकिन तुम्हारी हामी भरे गोल के सहारे मैनें तुम्हें अपने प्यार के मैच में हमेशा के लिए जीत लिया था।
हटिया स्टेशन से पुरी रवाना होने के लिए ट्रेन में बैठते ही मेरे मन ने एक ही पल में यादों के कितने सारे पन्ने पलट डाले थे। मैं नहीं चाहता की अब उन पलों को याद कर खुद को तक़लीफ़ दूँ। लेकिन मन तो मुठ्ठी से फिसलते रेत की तरह है, जिसे जितना काबू में करना चाहो वो उतनी ही तेज़ी से फिसलता चला जाता हैं।
एक सच्चाई ये भी है कि इंसानी हालात कितने ही बदल जाएँ पर रातें, शामें और दोपहरें कभी नहीं बदलती। वो अपने वक़्त पर ही आती है, और उन पलों की मीठी यादों की चादर बिछाकर दिल में टीस छोड़ जाती है।
एक तरफ मेरी ट्रेन धीरे-धीरे अपनी रफ्तार पकड़ रही थी, तो दूसरी तरफ मेरा मन यादों के घोड़े पर सवार उसका पीछा कर रहा था। सीट कन्फर्म न हो पाने की वजह से ट्रेन खुलने के 15 मिनट बाद भी जगह की
तलाश में एक कोच से दूसरे कोच में भटक रहा था। तभी एक सीट दिखी जिसपर कोई 55-60 साल की बुजुर्ग महिला अकेले बैठी थी। मैनें शालीन भाव से पूछा आंटी, क्या मैं यहाँ बैठ जाऊँ? मुझे राउरकेला तक ही जाना है।
ठंड का मौसम होने की वजह से आंटी नें विंडो सीट छोड़ते हुए मुझे बैठने का इशारा किया। मैनें मुस्कुराते हुए आंटी को Thanks बोला और उनकी ऑफर की गई सीट पर बैठ गया। थोड़ी देर तक खिड़की से बाहर पेड़-पौधों और बिजली के खंभों को पीछे छूटता देखता रहा, और आखिर में कानों में हेडफोन लगाकर गानें सुनने लगा। गानें सुनते-सुनते कब झपकी आयी याद नहीं।
थोड़ी देर बाद स्टेशन के अनाउंसमेंट से आँख खुली तो देखा ट्रेन गोविंदपुर स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर इन कर रही है। मैं बाहर देख ही रहा था कि तभी सामने की अपर बर्थ से आवाज आयी। Excuse me ज़रा बता देंगें की कौन सा स्टेशन है। आवाज़ मीठी थी, सो ध्यान अचानक ऊपर चला गया...मैनें देखा एक खूबसूरत लड़की चादर से बाहर झाँकते हुए जवाब के इंतज़ार में मेरी तरफ देख रही है।
मैनें झेंपते हुए खिड़की से बाहर देखने का नाटक किया और कहा...जी गोविंदपुर स्टेशन आया है।। इतना बोलकर मैं फोन में बज रहे Te Amo गानें को सुनते हुए तुम्हारी यादों में दुबारा खो गया। तुम्हे याद है, ना हमलोग जब भी मिलते थे, तो यही गाना गुनगुनाया करते थे और तुम्हे तो ये गाना इतना पसंद था, कि तुमने तो इसे अपना रिंगटोन ही बना लिया था।
आज भी याद है जब मैं हटिया से पटना जा रहा था और तुम मुझे हटिया स्टेशन पर छोड़ने आई थी। तय ये हुआ था कि तुम मुझे स्टेशन पर छोड़कर चुपचाप चली जाओगी, पीछे मुड़कर नहीं देखोगी। लेकिन हमारा तय किया हुआ कहाँ कुछ होता है जिंदगी में,सो ट्रेन खुलते ही मैनें तुम्हें खींच लिया था अपनी तरफ और तुम सीने से लगकर कितना रोई थी। किस तरह तुम्हें चुप कराया था मैनें।
अब तक गाड़ी राँची जंक्शन पर पहुँच गई थी। स्टेशन पर गाड़ी रुकते ही तुमने मेरे माथे को चूमते हुए सार्थक I Love You बोला और जल्दी वापस आने का Promise लेकर गाड़ी से उतरकर चली गई। मैं तुम्हें जाता देखता रहा और जब नहीं रहा गया तो तुमसे तब-तक फोन पर बात करता रहा जब-तक तुम घर नहीं पहुँच गई।
मैं तुम्हारी यादों के समंदर में गोता लगाए जा रहा था, कि तभी सामने से आवाज़ आयी। Excuse me क्या टाइम हो रहा है। ये सवाल उसी लड़की ने पूछा था। अब वो ऊपर से उतरकर मेरे सामने की सीट पर बैठ गई थी। मैनें सिर उठाकर जवाब दिया। जी 5 बज रहे है और अपने फोन में फिर से Busy हो गया। इतनें में उसने एक बार फिर टोकते हुए कहा...Sorry to disturb you but क्या आपका चार्जर मिल सकता है थोड़ी देर के लिए?
मेरा फोन डेड हो गया है, और मेरा चार्जर मिल नहीं रहा, शायद रूम पर ही भूल आयी हूं।
मैनें अपने बैग से चार्जर निकालकर उसकी तरफ बढ़ाया और फोन से हेडफोन हटाकर बैग में डाल दिया। फोन चार्जिंग पर लगाते हुए उसने Thanx बोला और मैनें It’s okk और दोनों ही खिड़की से बाहर डूबते सूरज को देखने लगे। थोड़ी देर में उसने फोन को ऑन किया और उस पर कुछ टाइप करने लगी। मैं अब भी खिड़की से बाहर ही देख रहा था कि उसने एक बार फिर टोका...जी ज़रा ये कोचिंग का पता बता देंगे। ये बोलते हुए उसने अपना फोन मेरी ओर बढ़ा दिया, उसमें लिखा था...
Ye aunty kya aapke sath hai.
मैनें एंटर मारते हुए उसी के नीचे लिख दिया...
Jee nahin ye mere sath nahi hai. Actualy ye seet unki hai. Meri seet confirm nahi hui, so mai yahin baith gaya.
मैनें एंटर मारते हुए उसी के नीचे लिख दिया...
Jee nahin ye mere sath nahi hai. Actualy ye seet unki hai. Meri seet confirm nahi hui, so mai yahin baith gaya.
इतना लिखकर मैनें उसका फोन वापस कर दिया। मेरे जवाब को पढ़कर अब वो पहले से थोड़ा सहज हो गई थी मुझसे।
थोड़ी देर में आंटी नें बोला-“बेटा क्या तुम उपर जाकर बैठ जाओगे? मैं लेटना चाह रही हूं।” इतना सुनते ही मैनें अपना बैग उठाया और ऊपर की सीट पर जाकर लेट गया।
कुछ समय बाद वो लड़की भी अपनी ऊपर वाली सीट पर आकर बैठ गई,और मेरी तरफ मुख़ातिब होते हुए पूछा कि आप कहाँ तक जा रहे हो। मैनें उठकर बैठते हुए जवाब दिया जी राउरकेला, और आप! ये मैनें प्रत्युत्तर में पूछा था।
मैं आख़िरी स्टेशन तक जाउँगी। ऐसा लग रहा था जैसे जवाब देते हुए वो हमारे बीच के अजनबीपन की दीवार को खत्म करना चाह रही हो। वो मुझसे सहजता से बातचीत करने लगी थी। लेकिन मैं अब भी सहज नहीं हो पाया था। इसी बीच उसने कई और सवाल पूछे जैसे...क्या नाम है, क्या करता हूँ, राउरकेला क्यों जाना हो रहा है। ये सब एक साँस में पूछ डाले थे उस मोहतरमा ने,जिसके प्रत्युत्तर में मैं बस इतना ही पूछ पाया था कि आप पुरी क्यों जा रही हैं? दरअसल वो लड़की राँची में एयर होस्टेस की तैयारी कर रही थी, और छुट्टियों में अपने घर पुरी जा रही थी।
उसने तो मेरे बारे में पूरी जानकारी ले ली थी। लेकिन मैं सहज न हो पाने की वजह से उससे ज्यादा बात नहीं कर पाया था। यहाँ तक की उसका नाम भी नहीं पूछ पाया था।
उस वक़्त पता नहीं क्यों एक अदृश्य सा बंधन मुझे रोक रहा था उससे घुलने-मिलने से, उससे बात करने से। वैसे ये पहली दफ़ा नहीं हो रहा था। तुम्हारे चले जाने के बाद लड़कियों से घुल-मिल नहीं पाता हूँ। उनसे बात करते वक़्त एक अजीब-सी शक्ति मुझे रोकती है। शायद ऐसा इसलिए भी होता है, क्योंकि ज़ेहन में आज भी तुम और तुम्हारा प्यार ज़िंदा है रश्मिता।
क्योंकि मुझसे दूर जाने का फैसला तो तुम्हारा था रश्मिता, मुझे तो आज तक ये भी नहीं पता कि आख़िर तुम मुझसे दूर गई क्यों?
तुमने तो अपना फैसला 26 नवम्बर 2014 को दो-चार मिनट की बातों के बीच सुना दिया था। तुम्हारे लिए तो हमारा रिश्ता उसी दिन ख़त्म हो गया था।
लेकिन मैं चाहकर भी न तो तुम्हें भूल पाया हूँ और ना ही तुम्हारी बातों को। तुम्हारे जाने का ग़म तो है, लेकिन उससे भी ज्यादा इस बात का दुःख है कि तुम गई भी तो बिना वजह बताए। अरे कम-से-कम मेरी दो-चार कमियाँ ही बता देती मुझे। कम-से-कम दिल को झूठी दिलासा तो दे पाता। यूँ तुम्हारा होकर भी अधूरा तो नहीं रहता।
खैर, इन सब बातों के बीच मेरा स्टेशन आ चुका था, और हमेशा की तरह दिल में तुम्हें और तुम्हारी यादों की धुंधली तस्वीर लिए मैं चुपचाप कंधें पर अपना बैग टाँगे ट्रेन से उतर गया था। वो अब भी मुझे खिड़की से जाता हुआ देख रही थी और मैं तुम्हारी यादों की सीढ़ियों के सहारे तुम्हारे पास आने की नाकाम कोशिश करता हुआ स्टेशन से बाहर निकल गया था।
नोट- मित्र के सच्चे अनुभवों से प्रेरित कहानी।
नोट- मित्र के सच्चे अनुभवों से प्रेरित कहानी।

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