दिल्ली

शहर वही है हालात बदल गए हैं।
लोग वही है जज्बात बदल गए हैं।
देखो तो कैसे कंधे का सहारा बनने वाले इंसान बदल गए हैं।

बाज़ार वही है खरीददार बदल गए हैं।
थोड़ा मैं बदला थोड़ी तू बदली।
अब तो यादों के बिस्तर पर पड़ी हर बात बदल गई हैं।

जितना बड़ा शहर उतनी बड़ी तन्हाई।
जितने बड़े लोग उतनी बड़ी रुशवाई।
अब तो अपनों के दिल में ही बज रही है मतलब की शहनाई।

इस शहर में कोई ठिकाना नहीं है अपना,
ग़म और खुशी का कोई फ़साना नहीं है अपना।

लौट आता हूँ हर बार तेरे पास लिए कुछ बहाने को,
ढूंढता हुँ तुझमें अपने इश्क़ के फसाने को।

ज़िंदा हुँ बस इतना ही काफी है,
ज़ेहन में तेरी यादों का लम्हा अब भी बाकी हैं।

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