पकौड़े वाली शाम

जब भी सूरज को अपने घर जाते देखता हूँ। अचानक नज़र मोबाइल के स्क्रीन पर चली जाती है। इसी वक़्त फ़ोन किया करती थी ना तुम मुझे और फोन उठाते ही डाँटते हुए बोला करती थी...कहाँ हो तुम यार, अभी तक तुम्हारी घुमक्कड़ी खत्म नहीं हुई क्या? कब से पकौड़े बनाकर तुम्हारा इंतज़ार कर रही हूँ। फिर मेरे कुछ जवाब देने से पहले ही प्यार से बोल पड़ती थी। चलो अब जल्दी से घर आ जाओ वरना पकौड़े ठंडे हो जाएंगे।
#लप्रेक_1

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