हिंदी दिवस का स्वांग

हिंदी दिवस था। सुबह से ही लोग हिंदी दिवस की शुभकामनाओं के संदेश एक-दूसरे को दे रहे थे तो वहीं दूसरी तरफ सोशल मीडिया को भी लोगों ने हिन्दीमय बना दिया। पूरे दिन लोग सोशल मीडिया पर कुछ भी लिखने या चैटिंग करने के लिए हिंदी का प्रयोग करते दिखाई दिए।

हिंदी दिवस के दिन लोगों को इस तरह रंगा सियार बना देखकर मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था, जैसे लोग हिंदी के प्रति श्रद्धा नहीं बल्कि उसके श्राद्ध में लगे हो। आज के इस तकनीकी युग में जहाँ हम और हमारी भाषा दिन-ब-दिन तरक्की तो कर रही है। लेकिन इस तरक्की के दूसरे पहलू पर गौर करें तो हिंदी वास्तविक विकास की सच्चाई से कोसों दूर खड़ी दिखाई देती है। भले ही तकनीक ने हिंदी को एक नया मुकाम दिया हो। लेकिन काल तक हिंदी जिन लोगों के कंधे पर बैठ इठलाया करती थी। आज उन्ही लोगों ने हिंदी को कंधे से उतार धरातल पर दे मारा है।

आप सोच रहे होंगे कि वो कौन लोग थे। जिन्होंने हिंदी को कंधे पर बिठाया हुआ था, और आख़िर क्यों उन्होंने हिंदी से मुँह मोड़ लिया? दरअसल ऐसे लोगों को ही आप कथाकार/रचनाकार, फिल्मकार और पत्रकार आदी- आदी नामों से बुलाते है।

आज स्थिति ये है कि हम हिंदुस्तानी होने का दंभ तो भरते है। साथ ही ये भी कहने से गुरेज नहीं करते कि हम हिंदी भाषी क्षेत्र में रहते है। लेकिन असलियत ये है कि ना तो हमें हिंदी अच्छे से आती है और ना ही कोई अन्य भाषा जिसकी दो-चार टूटी-फूटी लाइने बोलकर हम एक अलग तरह के स्ठत्वबोध में चले जाते है।
आश्चर्य तो तब होता है, जब गैरसरकारी विद्यालयों में हमारी प्राथमिक भाषा हिंदी को द्वितीयक भाषा के रूप में पढ़ाया और समझाया जाता है, और द्वितीयक को प्राथमिक। माना कि आज के इस भूमंडलीय युग में जहाँ हिंदी से हमारा काम नहीं चल सकता। लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि हम अपनी भाषा को तवज्जों देना छोड़कर किसी दूसरी भाषा के पीछे अंधी दौड़ लगाना शुरू कर दें। ऐसे में नतीजा यही होगा जो आज हम भाषियों का हुआ है।

आज हिंदी भाषी लोग जिस डाल पर बैठे है। उसे ही काट रहे है और उन्हें इस बात का तनिक भी अहसास नहीं है। स्थिति तो ये हो गयी है, कि लोगों ने हिंदी को अपनी सामाजिक स्थिति से जोड़ लिया हैं, और अगर कोई हिंदी बोल रहा हो तो लोग उसे गवांर समझते है। उसे ऐसी नज़रों से देखते है जैसे समाज में उसकी कोई हैसियत ही ना हो। ऐसा करने वाले भी वहीं लोग है जो वैश्विक भाषा की दो-चार लाइनें बोलकर अपने आप को बहुत बड़ा समझते हैं। आज भाषा को लोगों ने अपना फैशन बना लिया है। जो हमारे और हमारे समाज के लिए बेहद ही घातक स्थिति पैदा करने वाला है।

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