लप्रेक_3
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| तस्वीर साभार:गूगल |
चाय की चुस्कियों के साथ वो जो सिगरेट के धुएँ, छल्लों की शक्ल में मेरी आँखों के सामने घुमड़ते है ना। सच बताऊँ तो वो तुम्हारी जुल्फों के जैसे लगते है।
तुम्हारी जुल्फें भी तो आवारा हवाओं की आवारगी से परेशां होकर, यूँ ही मेरी गालों पर चुम्बन किया करती थी न। जिन्हें मेरे लाख मना करने के बाद भी तुम अपने नरम हाथों से सँवारने की नाकाम कोशिश करती थी और जब-तक मैं खुद उन बिखरे बालों को समेटकर एक सुंदर सा जूड़ा ना बना देता, तब-तक तुम ये नाकाम कोशिश करती रहती थी।
एक और बात बताऊँ जो तुम्हे मैनें आज तक नहीं बताई वो ये की तुम्हारे बाल बंधने के बाद किसी खूबसूरत गुलदस्ते के जैसे लगते थे। मानों उस गुलदस्ते को बुरी नज़रों से बचाने को किसी ने उसपर काला रंग छिड़क दिया हो। जिसपर तुम अपने मन-मुताबिक कभी हरा तो कभी सुनहरा तो कभी मेहंदी का लाल रंग ठीक वैसे ही छिड़कते रहा करती थी जैसे गुलदस्ता बनाने वाला फूलों के साथ थोड़े हरे, पीले, सुनहरे सजावटी पत्ते लगाता है और इन सबके बाद तुम्हारे बालों के ऊपर पर लगने वाला वो सतरंगी रबड़ ठीक गुलदस्ते के उस रिबन की तरह लगता है, जिसके लगते ही गुलदस्ता तैयार हो जाता है।
इन सबसे इतर एक बात जो मुझे अब समझ में आयी वो ये की बंधे बालों में अच्छी दिखने के बावजूद भी तुम हमेशा बालों को खोलकर मुझसे मिलने क्यों आती थी??
दरअसल तुम चाहती थी कि मैं तुम्हारे बिखरते बालों को आवारा हवाओं से बचाऊँ और उन्हें प्यार से समेटकर एक जूडें का रूप दे दूँ। जिन्हें तुम अपने सीने पर रखकर घंटों निहार सको और मेरे सो जाने पर उसी जूडें से मुझे गुदगुदाते हुए लाड़ कर सको।

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