वर्धा

कुछ सोच कर आया था वर्धा।
कुछ सपने लेकर आया था वर्धा।
बहुत कुछ खोकर आया था वर्धा।
कुछ पाने आया था वर्धा।

सोचा था दिल्ली की ही तरह कट जायेगा वर्धा।
नेट जेआरएफ दिलाएगा वर्धा।
खो चुका था तुमको जिन वजहों से, उन वजहों को दूर कर रिश्तों का ट्रायंगल हटायेगा वर्धा।
सुख दुख का साथी बन हमें मिलायेगा वर्धा।
ज़िन्दगी में वसंत लायेगा वर्धा।

अब सोचता हूँ क्या क्या गुल खिला रहा है वर्धा।
समय कटना तो दूर मुझे काट खा रहा है वर्धा।
सपनों से दूर ले जाके मुझे आजमा रहा है वर्धा।
खोने का सिलसिला तो अब खुद को खोकर ही थमेगा, 
ना जाने कब तुम्हे पाने के रास्तों से ग़मों को दूर ले जायेगा वर्धा।

अब तो बस यही लगता है:-
मेरी सोच तुम
मेरा सपना तुम
मेरा खोया धन तुम
मेरी पाने की तमन्ना तुम।

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